हमारा व्यक्तिगत इतिहास तो कुछ ख़ास नहीं है, इसलिए आज ‘प्रपोज़ डे’ पर एक ठेठ इलाहाबादी मित्र के अन्दाज़-ऐ-इजहार की दास्ताँ आपको इस थ्रेड के माध्यम से सुनाता हूँ। पढ़ें और मन में आए तो अपने अनुभव भी साझा करें।
पहली बात तो तब हमारे यहाँ ‘भैलेंटाइन वीक’ का कॉन्सेप्ट नहीं था, जो होना है सब एक ही दिन 14 फ़रवरी को फ़रिया जाता था, अब इजहार करने के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश में ‘मर्यादा’ की दीवार सबसे पहले बीच में आती है, जो अंबुजा सीमेंट वाली दीवार से भी मज़बूत होती है।
इसी बीच हमारे मित्र को भी इजहार-ऐ-इश्क़ की सूझी, इलाहाबादी क्राइटेरिया के हिसाब से एलिजिबल भी थे, उस लड़की के चक्कर में दो-चार लोगों को पीट चुके थे, उसकी रफ़ कापी ग़ायब कर पीछे वाले पन्ने पढ़ने के बाद रीसर्च भी पूरी टाइट थी, अब मामला था चिट्ठी लिखी जाए या सीधा ही बोल दें?
बहुत सोच विचार के बाद मित्र ने मुझसे आग्रह किया ‘गुरु तुम लिखते सही हो, एक बढ़ियाँ सा लव लेटर लिख दो फटाफट, आज बोल कर ही रहूँगा’। तो इस प्रकार जीवन का पहला और एकमात्र प्रेम पत्र भी मैंने किसी और के लिए लिखा, अपनी क्षमतानुसार जो भी बन पड़ा लिख डाला।
छुट्टी का वक़्त, स्कूल के बाहर अच्छी भीड़, बड़े ही साहस के साथ हमारे मित्र जेब में प्रेम पत्र, हाथ में गुलाब और चोक्लेट लिए हुए महिला की तरफ़ आगे बढ़े...दृश्य वही जैसा आप अनुमान लगा ही चुके होने..कक्षा के सभी उपद्रवी तत्व मौक़े पर दूर से ही नज़र बनाए हुए..क़दम धीरे..धड़कन तेज़।
अब ख़ूबसूरत लड़की के बगल में उसकी बाग़ी सहेली ना हो ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है, मित्र ने बड़ी सहजता से कहा ‘इनसे कुछ बात करनी थी, आप दो मिनट उधर जाएँगी’..जवाब वही बेहद गंदी शक्ल बनाए हुए ‘क्यूँ? ऐसी क्या बात करनी है’.. साल आधा कॉन्फ़िडेन्स यही प्रजाति मार देती हैं।
मित्र ने साहस बाँधकर सबके सामने ही बात कहने की ठान ली, तो गहरी साँस भरते हुए वो धीरे से बोला ‘देखो हम जानते हैं हम तुम्हारी तरह पढ़ने में तेज़ नहीं हैं, लोफर भी कह लो तो अतिशियोक्ति नहीं होगी, पर सच्चे दिल से कह रहे हैं ‘आइ लब यू सो मच’, कल से एक बेंच पर साथ बैठना चाहेंगे’।
प्रोपोज़ मारते ही सन्नाटा पसर गया, उत्सुक तो मैं भी था, पहले प्रेम पत्र का असर देखने के लिए, विरोधी खेमे में उत्सुकता थी, प्रिन्सिपल तक बात पहुँचा देने की धमकी भी आ चुकी थी, अब बस इंतज़ार था तो लड़की के जवाब का, क्या ही लम्हा था, जवाब एक को नहीं पचासों को मिलने वाला था।
मित्र ने बात ख़त्म कर प्रेम पत्र चोक्लेट के ऊपर लपेट आगे बढ़ाया ही था कि आवाज़ आयी ‘पागल-वागल हो क्या..ये सब करने स्कूल नहीं आती मैं, चेहरा ग़ुस्से से लाल, आवाज़ और तेज़, एक ही क्षण में लेटर और दिल दोनों के टुकड़े टुकड़े हो गए और चोक्लेट बग़ल की झाड़ी में पड़ी थी, बस पिटे नहीं।
साला आज तक समझ नहीं सके दिल उसका टूटा या हमारा, जीवन के पहले प्रेम पत्र के सैकड़ों टुकड़े ज़मीन पर पड़े थे और स्कूली जूतों द्वारा रौंदे जा रहे थे, मित्र शांत...’मैंने तो पहले ही कहा था’ जैसी बातें करने वाले लोग भी ज्ञान देने आगे आए, फिर दस मिनट में सब ग़ायब..सन्नाटा।
मित्र बिलकुल चुप था..कुछ बोले ही नहीं..फिर अचानक बोला..’बाबा एक काम करोगे’..हम तुरंत हामी भरे, वापिस बोला ‘अबे वो झाड़ी में देखो चोक्लेट पड़ी होगी..धीरे से उठा लो, महँगी वाली है, वापिस करके चलते हैं समोसा चाय काटने’।
इतनी लंबी बात कहने का मक़सद एक ही था...कम उम्र में जाग्रित हुई भावनाओं को अत्यधिक तूल ना दें, किसी एक लड़की के ना कह देने से जीवन नहीं रूक जाता, हमेशा नफ़रत करने वालों की संख्या प्यार करने वालों की संख्या से कम होती है, तो ज़िंदगी प्यार करने वालों के नाम। प्रपोज़ डे मुबारक हो।
Source: Bhaiyyaji (@bhaiyyajispeaks) from Twitter
Propose Day Special: By Bhaiyyaji
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7:11 AM
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